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Showing posts from March, 2008

मैं तेरी राह में चलता गया...

मैं तो तेरी राह में चलता गया यूं रात दिन, मंजिले दर मंजिलें बढता गया मैं रात- दिन। धुप मिले कभी, तो कही छांव के दामन मिले, बस बढता गया मैं मिल के पत्थर गिन-गिन। इस सफर के रास्ते क्या सराय भी सुनसान हैं, यूं चला की ख़ुद को खोता गया मैं दिन- ब- दिन। इस कदर इस राह पर चलता गया मैं रात- दिन, बस रास्ते ही याद थे, भूलता गया मैं रात, दिन। © अमित Amit