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Showing posts from August, 2009

स्वतंत्रता दिवस की बधाईयाँ

तेरा वैभव अमर रहे माँ , हम दिन चार रहें न रहें .. - अमित श्रीवास्तव ( चित्र : webduna से साभार )

क्या यही नियति है?

उगते सूरज को शीश नवाते हैं जिससे कुछ मिल जाए, उसकी गाते हैं. जो अस्त होता है उसे चिढ़ाते है. सत्य क्या और नैतिकता क्या, जो सत्तासीन है उसकी सब गातें हैं यह अब सर्वमान्य नियम है, काम हो तो सब भातें हैं. समाज कि क्या यही नियति है? कि जिसके दिन हैं उसकी रातें हैं?! ध्यान दें, यहाँ सब चलता है, शेष तो कहने सुनने कि बातें हैं। ९ अगस्त २००९ © अमित Amit

एक बार फिर से मैं उसी सड़क पर हूँ..

एक बार फिर से मैं उसी सड़क पर हूँ.. जिसके सफ़र का कोई छोर नहीं! बस चौराहे ही हैं, राहगीर कोई और नहीं. ठिठकता हूँ हर बार कि मंजिल पास है शायद मील के पत्थर का कोई जोर नहीं. हर बार कि तरह इस बार भी, मुझे पता नहीं किधर जाना है कोई सराय नहीं... कोई ठौर नहीं.