Skip to main content

Posts

Showing posts from December, 2015

रुबाईयाँ, शायरी और एक गुजरा साल

आँखियां भी अब निंदियारी हैं , रात के इस घुप्प अँधेरे में। लेकिन सपने जाग रहे हैं , नयी कहानियाँ लिखने नए सबेरे से। *** वे हमारे टूट कर बिखरने का इंतज़ार करते रहे , हम जितनी बार टूटे और मजबूत होते गए। *** उजाले में तो सब साथ होते हैं , कद से बड़ी परछाइयाँ होती हैं... अंधेरे में तो साथ भी नहीं दिखता , खुद के हाथों से रुसवाईया होती हैं। *** चलती साँसों की अठखेली है जिंदगी , मुहब्बत तो यूँ ही बदनाम हो जाती है। *** सच्चा प्यार तो एक स्वयंसिद्ध प्रमेय है , शर्तों और स्वार्थों की सीमाओं से अजेय है। *** रात के अँधेरे में जो न साथ रह सका , वो भरी दोपहरी में छांव मांगता है... *** वक़्त बहुत कम हो गया है लोगों के पास , सबका हिसाब हाथों - हाथ होना चाहिए। ~ अमित श्रीवास्तव  (C) (सर्वाधिकार सुरक्षित)