कितनी बड़ी विडम्बना है जीवन की,
हम एक बड़े कल की उम्मीद रखते है...
और जिंदगी हर दिन सिमटती जाती है॥
सपने हमेँ सोने नहीं देते,
और बेबसी जीने नहीं देती...
दुनियादारी में मानवीय मूल्योँ की बोली लगती है,
देवता बनाने वाला प्यार, बंदिशेँ बना देता है.
अपनी गलतियाँ अच्छी लगती हैँ...
क्या हम 'हम' रह जाते हैँ?
या खुद़ से अनजान बन जाते हैँ.. ॥
~ अमित, १७ मार्च २०१३, लखनऊ
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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हम एक बड़े कल की उम्मीद रखते है...
और जिंदगी हर दिन सिमटती जाती है॥
सपने हमेँ सोने नहीं देते,
और बेबसी जीने नहीं देती...
दुनियादारी में मानवीय मूल्योँ की बोली लगती है,
देवता बनाने वाला प्यार, बंदिशेँ बना देता है.
अपनी गलतियाँ अच्छी लगती हैँ...
क्या हम 'हम' रह जाते हैँ?
या खुद़ से अनजान बन जाते हैँ.. ॥
~ अमित, १७ मार्च २०१३, लखनऊ
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