अब किसी को भी नज़र आती न कोई दरार घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार रोज़ अखबारों में पढ़कर यह ख़्याल आया हमें इस तरफ़ आती तो हम भी देखते फ़स्ले—बहार मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके—जुर्म हैं आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फ़रार दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर हर हथेली ख़ून से तर और ज़्यादा बेक़रार - दुष्यंत कुमार दुष्यंत कुमार की यह रचना आज की परिस्थिति के सटीक तरीके से बताती है. हर जगह झूठ, भ्रष्टाचार और हरामखोरी का आलम है. चोरी भी करते हैं और अपने आप को सही भी ठहराते हैं लोग. उच्चवर्ग उनके साथ है, कोई क्या बिगाड़ लेगा. लेकिन शायद उन्हें यह पता होना चाहिए, कि अब अति हो गयी है... "दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर हर हथेली ख़ून से तर और ज़्यादा बेक़रार "
...Coming across different shades of life, compels to think in more colours... dream in many worlds! So, my posts reflect that departure n variation! एक विद्रोही की यात्रा...