मैं तो तेरी राह में चलता गया यूं रात दिन,
मंजिले दर मंजिलें बढता गया मैं रात- दिन।
धुप मिले कभी, तो कही छांव के दामन मिले,
बस बढता गया मैं मिल के पत्थर गिन-गिन।
इस सफर के रास्ते क्या सराय भी सुनसान हैं,
यूं चला की ख़ुद को खोता गया मैं दिन- ब- दिन।
इस कदर इस राह पर चलता गया मैं रात- दिन,
बस रास्ते ही याद थे, भूलता गया मैं रात, दिन।
© अमित Amit
मंजिले दर मंजिलें बढता गया मैं रात- दिन।
धुप मिले कभी, तो कही छांव के दामन मिले,
बस बढता गया मैं मिल के पत्थर गिन-गिन।
इस सफर के रास्ते क्या सराय भी सुनसान हैं,
यूं चला की ख़ुद को खोता गया मैं दिन- ब- दिन।
इस कदर इस राह पर चलता गया मैं रात- दिन,
बस रास्ते ही याद थे, भूलता गया मैं रात, दिन।
© अमित Amit
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