उगते सूरज को शीश नवाते हैं
जिससे कुछ मिल जाए, उसकी गाते हैं.
जो अस्त होता है उसे चिढ़ाते है.
सत्य क्या और नैतिकता क्या,
जो सत्तासीन है उसकी सब गातें हैं
यह अब सर्वमान्य नियम है,
काम हो तो सब भातें हैं.
समाज कि क्या यही नियति है?
कि जिसके दिन हैं उसकी रातें हैं?!
ध्यान दें, यहाँ सब चलता है,
शेष तो कहने सुनने कि बातें हैं।
९ अगस्त २००९
© अमित Amit
जिससे कुछ मिल जाए, उसकी गाते हैं.
जो अस्त होता है उसे चिढ़ाते है.
सत्य क्या और नैतिकता क्या,
जो सत्तासीन है उसकी सब गातें हैं
यह अब सर्वमान्य नियम है,
काम हो तो सब भातें हैं.
समाज कि क्या यही नियति है?
कि जिसके दिन हैं उसकी रातें हैं?!
ध्यान दें, यहाँ सब चलता है,
शेष तो कहने सुनने कि बातें हैं।
९ अगस्त २००९
© अमित Amit
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