तेरी आरजू में उडे तो थे
चंद खुश्क पत्ते चिनार के
जो हवा के जोर सो गिर गया
उनमे ये एक खाक-ऐ-सार था,
वो उदास उदास इक शाम थी,
इक चेहरा था इक चिराग था
और कुछ नहीं था जमीन पर
एक आसमां का गुबार था।
जो गुज़र गया वो तो वक़्त था
जो बचा रहा वो गुबार था।
मेरा क्या था तेरे हिसाब में
मेरा साँस साँस उधार था।
- गुलाम अली साहब की एक ग़ज़ल।
चंद खुश्क पत्ते चिनार के
जो हवा के जोर सो गिर गया
उनमे ये एक खाक-ऐ-सार था,
वो उदास उदास इक शाम थी,
इक चेहरा था इक चिराग था
और कुछ नहीं था जमीन पर
एक आसमां का गुबार था।
जो गुज़र गया वो तो वक़्त था
जो बचा रहा वो गुबार था।
मेरा क्या था तेरे हिसाब में
मेरा साँस साँस उधार था।
- गुलाम अली साहब की एक ग़ज़ल।
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