पेड़ के पीले पत्ते,
शाम की ख़ामोशी,
एक धुंधला सा चेहरा
और पुरानी बातें.
गाँव की पगडण्डी,
तपता सूरज,
नंगे पाँव,
और चुभते कांटे.
ना आज की चिंता,
ना कल की फिकर,
धुल-धुल्लाकड़ दिन भर
वो किस्सागोई की राते.
समय का चक्र,
बिछड़ते लोग,
बिसरती यादें,
बस काम की बातें.
बेख़ौफ़ दिन,
अलसाई राते,
आज भी याद हैं
वो बिन कही बातें.
[आत्मीय श्री मनोज श्रीवास्तव (फ्लोरिडा वाले) के बौधिक सुझाव सहित सम्पादित]
© अमित एवं मनोज
७ जुलाई २०१०
७ जुलाई २०१०
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