भूमिका: गत दिनों मुनव्वर राना साहब NDTV के एक कार्यक्रम पर आये. मैं उनकी शायरी का बहुत बड़ा प्रशंसक हुआ करता था. ये जनाब राय बरेली के हैं, और शायरी में बेजोड़ हैं. अपने समय के शीर्ष शायरों में इनको शुमार किया जाता है. लेकिन उस NDTV वाले कार्यक्रम में मैंने इनका एक अलग ही चेहरा देखा. जो जिन्ना और तालिबान का मिला जुला प्रतीत हुआ: "तुम्हे हुकूमत मिली तुम गुजरात बनाते हो, हमें हुकूमत मिली हम दिल्ली बनाते हैं... हम औरंगजेब हैं, हम अपनी खिचड़ी खुद पकाते हैं" मुनव्वर साब से ये मुल्लागिरी की उम्मीद नहीं थी. बहरहाल, उनको जवाब मिलना चाहिए: गुजरात याद रखते हो, काश्मीर भूल जाते हो, कैसे सेकुलर हो अपना नाम भूल जाते हो... पोलिटिकली कर्रेक्ट होना तो बहुत आसान है, हैरानी है कि हजारों की गयी जान भूल जाते हो... मज़हब की दूकान सरेआम चला लेते हो, लेकिन अपना फ़र्ज़ और इमान भूल जाते हो... नोआखाली से रावलपिंडी तक कौम बना लेते हो, और लाखों की गयी जान भूल जाते हो... आगजनी और लूट का अधिकार याद रखते हो, और अपनी जमीं अपना हिंदुस्त...
...Coming across different shades of life, compels to think in more colours... dream in many worlds! So, my posts reflect that departure n variation! एक विद्रोही की यात्रा...