वक्त के थपेडों से लड़ कर,
अभाव की ऊँचाई चढ़ कर,
कुछ हिम्मत वाले सपने देखते हैं..
जी-जान लगा कर मेहनत करते हैं.
कर गुजरने का धुन अगर सच्चा है,
सपने सच हो जाएँ तो अच्छा है.
कोई तगमा नहीं चाहिए,
लोगों के चेहरों पर बस खुशी चाहिए.
किसी का बुरा हो जाए,
ऐसी कामयाबी भी क्या कामयाबी
हम खुद को भूल जाए,
ऐसी मंजिल भी क्या मंजिल.
लेकिन दुनिया भी बड़ी अजीब है,
उसको पानी नहीं मृगमरीचिका चाहिए,
काम नहीं, बस दिलासा चाहिए.
फिर कुछ ऐसे भी लोग होते हैं,
धर्म बेचते हैं, ईमान बेच देते हैं
खुद की कामयाबी की खातिर इंसान बेच देते हैं!
ऐसे लोग शहंशाह भी बन जाएँ तो क्या,
सबको बेवक़ूफ़ बना भी लें तो क्या!
जीत तो हमेशा से सच की हुई है,
आज हँस लो सपने बेचने वालों,
आखीर में तो मेहनत ही मुस्करायी है!
अभाव की ऊँचाई चढ़ कर,
कुछ हिम्मत वाले सपने देखते हैं..
जी-जान लगा कर मेहनत करते हैं.
कर गुजरने का धुन अगर सच्चा है,
सपने सच हो जाएँ तो अच्छा है.
कोई तगमा नहीं चाहिए,
लोगों के चेहरों पर बस खुशी चाहिए.
किसी का बुरा हो जाए,
ऐसी कामयाबी भी क्या कामयाबी
हम खुद को भूल जाए,
ऐसी मंजिल भी क्या मंजिल.
लेकिन दुनिया भी बड़ी अजीब है,
उसको पानी नहीं मृगमरीचिका चाहिए,
काम नहीं, बस दिलासा चाहिए.
फिर कुछ ऐसे भी लोग होते हैं,
धर्म बेचते हैं, ईमान बेच देते हैं
खुद की कामयाबी की खातिर इंसान बेच देते हैं!
ऐसे लोग शहंशाह भी बन जाएँ तो क्या,
सबको बेवक़ूफ़ बना भी लें तो क्या!
जीत तो हमेशा से सच की हुई है,
आज हँस लो सपने बेचने वालों,
आखीर में तो मेहनत ही मुस्करायी है!
[यह कविता देश की वर्तमान परिदृश्य में हैं. हम प्रत्यक्ष देख और समझ सकते हैं. किन्तु राजनितिक विवाद में ना पड़ते हुए मैंने अपने संग्रह से एक चित्र लगाया है. संलग्न चित्र सन 2006 के एक पत्रिका से है. सारा विवरण प्रस्तुत है. पर जिस संगठन को मैंने खड़ा किया (जिसका जिक्र उक्त चित्र में है) उसमे में भी केजरीवाल जैसे स्वार्थी लोग थे. किन्तु मुझे तो आगे बढ़ना ही था, बाद में YFE खड़ा करने में योगदान दिया. बाद में Street Children के लिए खोज , BDP, RWAs के साथ Water-electricity , संकल्प, HSYN तथा और भी बहुत सारे प्रयासों में यथासंभव योगदान किया. प्रयास अनवरत जारी है, और रहेगा. बस हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं... ]
~ अमित कुमार श्रीवास्तव,
१५ फरवरी २०१४, लखनऊ ©
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