पिछले कुछ दिनों से मेरा आत्म निरीक्षण चल रहा है. सही गलत फैसले, समाज कार्य के अपने समय का ध्यान ना रखना... और जब आप खुद ही Vulnerable और Available बना देते हैं, तो मौके पर चौका तो दुनिया मारेगी ही, किसी से शिकवा नहीं, बस खुद से शिकायत है. इसी को व्यक्त करने के लिए एक शैर लिखा मैंने आज:
बस एक ही अर्ज है आज इस ज़माने से,
बाज़ आये हमारी खामोशियाँ आजमाने से,
यूँ ही सह लिया है दौर-ए-जहाँ के सितम,
सीने में ज्वालामुखी है जाने किस ज़माने से!
लखनऊ, ९ अगस्त २०१४
बस एक ही अर्ज है आज इस ज़माने से,
बाज़ आये हमारी खामोशियाँ आजमाने से,
यूँ ही सह लिया है दौर-ए-जहाँ के सितम,
सीने में ज्वालामुखी है जाने किस ज़माने से!
लखनऊ, ९ अगस्त २०१४
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