मुखौटे पहने लोग,
खोजते अपनी खुशियाँ,
शख्सियत से बड़ी परछाइयाँ।
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मैंने नेह निचोड़ा इसमें,
गागर में सागर भर लाया,
हर चितवन में तुमको पाया।
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शरदीय चंद्र की शीतलता में,
निशा की गहरी व्याकुलता में,
मन-मंदिर में किसकी काया!
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वास्तविकता एक भ्रम या सत्य,
सत्य एक कल्पना या अर्थ,
अर्थ एक मूर्त या निरंकार।
... १२ दिसम्बर २०१२, लखनऊ
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