तमिलनाडु में एक पेरियार नाम का व्यक्ति हुआ। उसे हिन्दुओं में "अनुसूचित जातियों" के अलावा सभी हिन्दुओं से घृणा थी। वह पिछड़ी जाति के लोगों का बहिष्कार करने की बात करता था। ब्राह्मणों का तो समूल नरसंहार करने के लिए लोगों को भड़कता रहता था।
इतना ही नहीं, उसे उत्तर भारत के लोगों से अत्यधिक घृणा थी। इसीलिए उसके बहकावे में आए लोग जब हिन्दू धर्म छोड़ते थे तो बौद्ध नहीं, बल्कि मुस्लिम बनते थे। चूंकि महात्मा बुद्ध उत्तर भारत से थे, इसलिए उसे बुद्ध से भी घृणा थी।
उसकी मानसिक विकृति इतनी थी कि ७२ साल की उम्र में उसने अपने २८ साल की दत्तक पुत्री से कोर्ट में शादी की। इसके लिए उसने अपने ही बनाए नियमों (जो उसने arranged marriage के लिए बनाए थे) को तोड़ा। और जब थोड़ी समझ वाले चेलों ने विरोध किया तो यह बहाना बताया कि सम्पत्ति दत्तक पुत्री को नहीं जा सकती थी इस लिए उसे पत्नी बना लिया।
अपने ही समाज और देश से घृणा फैला कर उसने मिशनरियों और जिहादियों के लिए तमिलनाडु को उपजाऊ जमीन बना दिया। उसी का दुष्परिणाम है कि तमिलनाडु के अधिकतर लोगों में हिन्दी के प्रति घृणा का बोध रहता है। डीएमके और एआईएडीएमके उसकी ही रोपी घृणा की फसल काटते रहे हैं।
लेकिन, इतने दूषित व्यक्ति को उत्तर भारत के लोगों के सामने समाज सुधारक के रूप में स्थापित करने का काम नेहरूवादी सेक्यूलरों ने किया। आज भी उत्तर भारत का आम छात्र उस व्यक्ति को समाज सुधारक के रूप में जनता है, घृणा वादी के रूप में नहीं। इस प्रकार, उसके असली विचारों को छुपा कर नेहरूवादियों ने आम भारतीय के मन मस्तिष्क में एक और नकली महापुरुष खड़ा किया।
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