आज धमाका नहीं हुआ जग सूना सा है,
लहू जनों का गिरा नहीं सब सूना सा है।
बस-बाज़ार-रेल-मन्दिर या चौराहा,
जाए कहाँ, आतंक सर्वत्र बुना सा है।
नर-नारी-बच्चे-बुढे धर्म-प्रसार बलि चढें हुए हैं,
'उनको' क्या वो निरपेक्षता का मुखौटा मढे हुए हैं।
हम मरे तो क्या, उनके वोट तो बढे हुए हैं,
वोट लोभ में मानवता के आयाम भी ढहे हुए हैं।
क्या हम मिट जायेंगे इन धमाकों से, हत्याओं से,
गजनी, गोरी, खिलजी, तुगलक भी ये करते आए हैं।
आज भी हम प्रज्वलित हैं सत्य ज्वाला बनकर,
हर पल मात्रभूमि की रक्षा में लड़ते आए हैं।
- अमित, १५ नवम्बर २००८
© अमित Amit
लहू जनों का गिरा नहीं सब सूना सा है।
बस-बाज़ार-रेल-मन्दिर या चौराहा,
जाए कहाँ, आतंक सर्वत्र बुना सा है।
नर-नारी-बच्चे-बुढे धर्म-प्रसार बलि चढें हुए हैं,
'उनको' क्या वो निरपेक्षता का मुखौटा मढे हुए हैं।
हम मरे तो क्या, उनके वोट तो बढे हुए हैं,
वोट लोभ में मानवता के आयाम भी ढहे हुए हैं।
क्या हम मिट जायेंगे इन धमाकों से, हत्याओं से,
गजनी, गोरी, खिलजी, तुगलक भी ये करते आए हैं।
आज भी हम प्रज्वलित हैं सत्य ज्वाला बनकर,
हर पल मात्रभूमि की रक्षा में लड़ते आए हैं।
- अमित, १५ नवम्बर २००८
© अमित Amit
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