तुम्हारे बाद, तुम्हारी याद ने अहसास कराया... कि मैं खुद को भूल सकता था तुम्हारे आगोश में। आज मैं, बस मैं बन कर रह गया हूँ। वो दिन क्या थे, जब मैं दुनिया का सितम सार माथे ले लेता था। भिखारियों के लिए रो लेता, मासूम मसखरों के लिए हँस लेता... और जब भी तुम्हारे पास आता, बस तुम्हारा ही हो जाता। बातों से ही कंधे का बोझ हल्का कर लेता, तुम भी खुशी से इसका साथ निभाती। तब शायद हमें हिसाब नहीं आता होगा। मैं तो वैसा ही रहा, अनकहा अहसास इस उम्मीद के सहारे दफ़न कर रखा था... लेकिन तुम्हे तुम्हरे हिसाब ने जीना सिखाया, और तुमको सुख देने वाला कोई और भी मिल गया। रास्ते अलग होगये अपने, तो बातें बहुत अहम् लगती थी, वो फिजूल की लगने लगी थी। पर मुझे कोई शिकवा नहीं, शायद दुनिया ऐसे ही चलती है। लोग मिलते हैं... पर हमेशा के लिए नहीं। कल शायद कोई और 'तुम' मिले। अदाकारा बदल जाए चाहे, कहानी तो उतनी ही हसीन होनी है। फिर मिलेंगे। 'तुम्हारा' मैं!
...Coming across different shades of life, compels to think in more colours... dream in many worlds! So, my posts reflect that departure n variation! एक विद्रोही की यात्रा...