मैं वो नहीं जो आपने समझ रखा है...
वो 'मैं' कोई और था, ये 'मैं' कोई और.
वो 'मैं' कोई और था, ये 'मैं' कोई और.
तो हम आज की बात करते हैं -
मुझे आज भी तन्हाईयाँ पसंद तो हैं
लेकिन महफ़िल से कोई गुरेज नहीं.
मैं ज़माने की बात तो करता हूँ आज भी,
लेकिन खुद से अब परहेज नहीं.
पहले बस सोचता था - अब समझ चूका हूँ,
मैं हूँ तो दुनिया है नहीं तो बाकी सब कहानी है!
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मैं भी और मैं भी
भीड़ में किसने देखा मुझको
...
सिर्फ मैं ने पहचाना इस मैं को !!