भूमिका:
गत दिनों मुनव्वर राना साहब NDTV के एक कार्यक्रम पर आये. मैं उनकी शायरी का बहुत बड़ा प्रशंसक हुआ करता था. ये जनाब राय बरेली के हैं, और शायरी में बेजोड़ हैं. अपने समय के शीर्ष शायरों में इनको शुमार किया जाता है.
लेकिन उस NDTV वाले कार्यक्रम में मैंने इनका एक अलग ही चेहरा देखा. जो जिन्ना और तालिबान का मिला जुला प्रतीत हुआ:
"तुम्हे हुकूमत मिली तुम गुजरात बनाते हो,
हमें हुकूमत मिली हम दिल्ली बनाते हैं...
हम औरंगजेब हैं, हम अपनी खिचड़ी खुद पकाते हैं"
मुनव्वर साब से ये मुल्लागिरी की उम्मीद नहीं थी. बहरहाल, उनको जवाब मिलना चाहिए:
गुजरात याद रखते हो, काश्मीर भूल जाते हो,
कैसे सेकुलर हो अपना नाम भूल जाते हो...
पोलिटिकली कर्रेक्ट होना तो बहुत आसान है,
हैरानी है कि हजारों की गयी जान भूल जाते हो...
मज़हब की दूकान सरेआम चला लेते हो,
लेकिन अपना फ़र्ज़ और इमान भूल जाते हो...
नोआखाली से रावलपिंडी तक कौम बना लेते हो,
और लाखों की गयी जान भूल जाते हो...
आगजनी और लूट का अधिकार याद रखते हो,
और अपनी जमीं अपना हिंदुस्तान भूल जाते हो...
कातिल औरंगजेब भी कही तुमसे अच्छा था,
तुम तो सेकुलर के चक्कर में आत्मसम्मान भूल जाते हो!
© अमित श्रीवास्तव, लखनऊ २४ जुलाई २०१२
उपसंहार: राना साहब की उत्तेजक शायरी के ठीक २ दिन बाद बरेली और आसाम में दंगे शुरू हो गए... शायद ये इनका असर है या एक आम सोच है, लेकिन एक जिम्मेदार शायर से इतनी नीच सोच की उम्मीद नहीं थी.
गत दिनों मुनव्वर राना साहब NDTV के एक कार्यक्रम पर आये. मैं उनकी शायरी का बहुत बड़ा प्रशंसक हुआ करता था. ये जनाब राय बरेली के हैं, और शायरी में बेजोड़ हैं. अपने समय के शीर्ष शायरों में इनको शुमार किया जाता है.
लेकिन उस NDTV वाले कार्यक्रम में मैंने इनका एक अलग ही चेहरा देखा. जो जिन्ना और तालिबान का मिला जुला प्रतीत हुआ:
"तुम्हे हुकूमत मिली तुम गुजरात बनाते हो,
हमें हुकूमत मिली हम दिल्ली बनाते हैं...
हम औरंगजेब हैं, हम अपनी खिचड़ी खुद पकाते हैं"
मुनव्वर साब से ये मुल्लागिरी की उम्मीद नहीं थी. बहरहाल, उनको जवाब मिलना चाहिए:
गुजरात याद रखते हो, काश्मीर भूल जाते हो,
कैसे सेकुलर हो अपना नाम भूल जाते हो...
पोलिटिकली कर्रेक्ट होना तो बहुत आसान है,
हैरानी है कि हजारों की गयी जान भूल जाते हो...
मज़हब की दूकान सरेआम चला लेते हो,
लेकिन अपना फ़र्ज़ और इमान भूल जाते हो...
नोआखाली से रावलपिंडी तक कौम बना लेते हो,
और लाखों की गयी जान भूल जाते हो...
आगजनी और लूट का अधिकार याद रखते हो,
और अपनी जमीं अपना हिंदुस्तान भूल जाते हो...
कातिल औरंगजेब भी कही तुमसे अच्छा था,
तुम तो सेकुलर के चक्कर में आत्मसम्मान भूल जाते हो!
© अमित श्रीवास्तव, लखनऊ २४ जुलाई २०१२
उपसंहार: राना साहब की उत्तेजक शायरी के ठीक २ दिन बाद बरेली और आसाम में दंगे शुरू हो गए... शायद ये इनका असर है या एक आम सोच है, लेकिन एक जिम्मेदार शायर से इतनी नीच सोच की उम्मीद नहीं थी.
Comments
aise hee likhte raho sada.. :)
Read:
http://www.islamsabkeliye.com/info-details?id=142
Author Name: मधुर सन्देश संगम: लेखक -प्रो0 बी0एन0पाण्डेय (भूतपूर्व राज्यपाल उड़ीसा एवं इतिहासकार)