जमाना हो गया जमाने को देखते देखते,
कभी दिन ढलते, कभी मौसम बदलते...
किन-किनका का बोझ लिए जिया जाये,
जिंदगी भी थकी जाती हैं यूँ चलते चलते।
कल आने का एहसास भी अब खास नहीं,
बहुत दिन हो गए, यूँ आज को ढलते-ढलते।
सर्द मौसम का असर है न, बसंत का इंतज़ार,
अब बरसों हो गए मौसम बदलते-बदलते।
सब रंगो कर रस अब ऐसे ही जान लेते हैं,
ये कहाँ आ गए हम यूँ ही चलते चलते।
कई रंग देखे लोगों के ऐसे ही मिलते मिलते,
कभी साथ साथ चलते, कभी बगल से निकलते...
~ अमित श्रीवास्तव, 5 जनवरी 2015
लखनऊ, भारत।
कभी दिन ढलते, कभी मौसम बदलते...
किन-किनका का बोझ लिए जिया जाये,
जिंदगी भी थकी जाती हैं यूँ चलते चलते।
कल आने का एहसास भी अब खास नहीं,
बहुत दिन हो गए, यूँ आज को ढलते-ढलते।
सर्द मौसम का असर है न, बसंत का इंतज़ार,
अब बरसों हो गए मौसम बदलते-बदलते।
सब रंगो कर रस अब ऐसे ही जान लेते हैं,
ये कहाँ आ गए हम यूँ ही चलते चलते।
कई रंग देखे लोगों के ऐसे ही मिलते मिलते,
कभी साथ साथ चलते, कभी बगल से निकलते...
~ अमित श्रीवास्तव, 5 जनवरी 2015
लखनऊ, भारत।
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