मैं और मेरा अंतर्मन,
खोजने चले थे सुंदरतम,जो हो सम्पूर्ण-सर्वोत्तम.
जहाँ पर कोई प्यास न हो,
जीने-मरने की त्रास न हो.
ऐसा कभी संभव भी था?
फिर भी यह एक अनुभव ही था.
कुछ लोग मिले कुछ बिछड़ गए,
सबका अपना ही मतलब था,
जीने की आपाधापी में,
कुछ बने संबन्ध कुछ बिगड़ गए..
कितने मिले और चले गए,
बस साथ रहे जो मेरे थे...
सुख-दुःख में साथ निभाते गए,
जो साथ चले वो मेरे थे...
सम्पूर्ण होना अब संभव है,
जो हैं मेरे, उनके लिए,
इनसे ही नव निर्माण का अनुभव है...
( मैंने यह कविता सन २०११ के बसंत में लिखी थी... )
Comments
I and my conscience;
Searching for the finest,
Be the total - the best.
Where there is no thirst;
Live - do not fear to die.
It was ever possible?
Yet it was an experience.
Some people have found a lost,
Everybody concerned,
Living in the race,
Some made a bad relationship ..
How much and gone,
Just stayed with were my ...
Well - to play with pain,
Go with which they were mine ...
To complete is now possible to
Me that, for them,
They experience the newly ...
(I wrote this poem in the spring of 2011 was the year ...
:) lovely poem
जो हैं मेरे, उनके लिए,
इनसे ही नव निर्माण का अनुभव है...
amit bhai... aapke shabd aur aap!! dono ka jabab nahi!:)