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Showing posts from 2014

बलिदान दिवस - बिस्मिल, अशफाक़ और रोशन सिंह की याद में।

कुछ युवकों के अदम्य साहस ने विश्व-विजयी (जैसा की उनका दावा था) अंग्रेज़ो को उनकी औकात बता दी थी। काकोरी में खजाने वाली ट्रेन ही नहीं, बल्कि अंग्रेजों के दंभ की इज्ज़त भी लूटी गयी थी। अंग्रेज़ कायरों ने भारत माता के सपूतों रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह खान और ठाकुर रोशन सिंह को आज ही के दिन, सान 1927 में फांसी दिया था। इस कांड के चौथे योद्धा थे राजेंद्र प्रसाद लाहिड़ी जिन्हे दो दिनों पहले ही यानी 17 दिसंबर को सरकार ने गोंडा जेल में फांसी दे दी थी। भारत के इन चार अमर बलिदानियों को कोटिशः नमन। आज जब देश आजाद है, कुछ खानदानों और कुछ व्यक्तियों ने ही इतिहास के सभी पन्नों पर कब्जा कर लिया है। अफसोस और शर्मनाक बात है कि इन शहीदों के नाम पर देश के शायद किसी शहर में कोई सड़क या मोहल्ला हो। ऐसे वीर सपूतों को भुला देने वाला राष्ट्र अपनी आज़ादी भी किसी दिन भुला देगा।       मुझे याद है, कि जब मैं  स्कूल में था तब हिन्दी की किताब में ठाकुर रोशन सिंह कि फाँसी, उनकी आर्थिक दशा और पारिवारिक जिम्मेदारियों पर एक कहानी थी। उसी माध्यम से मैंने रोशन सिंह जी को पहली बार ज...

आज हाइकू लिख रहा हूँ।

मुखौटे पहने लोग, खोजते अपनी खुशियाँ, शख्सियत से बड़ी परछाइयाँ। *** मैंने नेह निचोड़ा इसमें, गागर में सागर भर लाया, हर चितवन में तुमको पाया। *** शरदीय चंद्र की शीतलता में,  निशा की गहरी व्याकुलता में, मन-मंदिर में किसकी काया! *** वास्तविकता एक भ्रम या सत्य, सत्य एक कल्पना या अर्थ, अर्थ एक मूर्त या निरंकार।  ... १२ दिसम्बर २०१२, लखनऊ

World Hindu Congress, 2014 - A dream that turned in to reality.

This year has been fulfilling year so far. Our well desired government is at center, India getting prominence in the world. And new visions on development, diplomacy and security are coming afore.  World Hindu Congress is brainchild of great visionary Swami Vigyananand ji. He conceptualized it in 2009, and presented in VHP-ICM Meet, Mumbai 2010. And Finally last month the imagination and concept became the reality: When 1800 Hindus from 53 countries, heed the call of “Sangachchhadhwam Samvadadhwam” (Step together, Express together), and converge to put their combined constructive and positive energy together, the event had to be historic for Hindu rise and resurgence. This happened from 21-23 November 2014 when delegates from around the world gathered to deliberate the future for a better world at the First World Hindu Congress, through the universal Hindu values and pluralism, in New Delhi, Bharat. Seven conferences, 45 sessions, and 196 speakers provided the opportunity to ...

मंगलमय भारत

मंगलयान की अभूतपूर्व सफलता "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" की दिशा में एक लंबी छलांग है। भारतीय वैज्ञानिकों ने आज वह कारनामा कर दिखाया है, जिसकी कल्पना करना भी कुछ साल पहले तक नामुमकिन था। अब तक दुनिया भर के कई देश कुल मिलाकर 51 बार यह कोशिश कर चुके हैं, कि सबसे रहस्यमयी कहे जाने वाले मंगल ग्रह तक पहुंचा जा सके, लेकिन सिर्फ 21 अभियानों को सफलता का मुंह देखना नसीब हुआ। 24 सितम्बर, 2014 के इसरो की प्रेस-विज्ञप्ति के अनुसार: India's Mars Orbiter Spacecraft successfully entered into an orbit around planet Mars today morning (September 24, 2014) by firing its 440 Newton Liquid Apogee Motor (LAM) along with eight smaller liquid engines. This Liquid Engines firing operation which began at 07:17:32 Hrs IST lasted for 1388.67 seconds which changed the velocity of the spacecraft by 1099 metre/sec.   [भारत का मंगलयान मिशन सफल हो गया है। मंगलयान आज मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर गया है। भारतीय समयानुसार सुबह 7.17.32 बजे के आसपास मंगलयान का ...

एक ही अर्ज है आज इस ज़माने से...

पिछले कुछ दिनों से मेरा आत्म निरीक्षण चल रहा है. सही गलत फैसले, समाज कार्य के अपने समय का ध्यान ना रखना... और जब आप खुद ही Vulnerable और Available बना देते हैं, तो मौके पर चौका तो दुनिया मारेगी ही, किसी से शिकवा नहीं, बस खुद से शिकायत है. इसी को व्यक्त करने के लिए एक शैर लिखा मैंने आज: बस एक ही अर्ज है आज इस ज़माने से, बाज़ आये हमारी खामोशियाँ आजमाने से, यूँ ही सह लिया है दौर-ए-जहाँ के सितम, सीने में ज्वालामुखी है जाने किस ज़माने से! लखनऊ, ९ अगस्त २०१४ 

Recently discovered again - Myself

It is rightly said that this world is limited to your existence.  But this existence is quite complicated. For someone like me - the existence is sprawled right from the means of living being to some in need and to the society, culture and nation.  I must accept that, many a times I have messed with the priorities of these aspects.Hence, lost on the due course of life. Many companions are lost by cruel hands of nature, many mend their ways out. But I keep discovering myself. Past few years made that phase of life, when the mess was on and personal life was on last priority. Intense socio-political campaign which was started years ago has just yielded power change in India. However, many things have changed. Many hopes are proven myths.  Amidst this chaos in thoughts, somewhere the personal existence has been reckoned. And here I am, back to personal blogs, poems and if time permits some serious research articles. :)

Food Crisis and Agriculture in India

Along with my major research interests such as Natural Resource Management, Drought Management, Agriculture is one of my favorite topic for research and analysis. Agriculture is not only the most important economic activity that feed entire human population, it is also single source of livelihood for world's most poor and marginal population.     With openness provided by Internet Forums and #SocialMedia, there is a possibility of an inclusive policy discussion. One of such discussion was conducted by @IDRC "Are genetic crops the answer to the world food crisis? Ask India's Green Revolution founder" on World Food Day, 2013.     Though, I don't endorse genetic food for people due to possible generic massacre of agricultural gene-pool, my interest was solving food crisis. Hence my Question to M S Swaminathan, known as the father of the Green Revolution in India was this:  @AmiSri @IDRC_CRDI @DougSaunders MyQuestion: Despite India has wor...

दो तरह के लोग

वक्त के थपेडों से लड़ कर,  अभाव की ऊँचाई चढ़ कर,  कुछ हिम्मत वाले सपने देखते हैं..  जी-जान लगा कर मेहनत करते हैं. कर गुजरने का धुन अगर सच्चा है, सपने  सच हो जाएँ तो अच्छा है. कोई तगमा नहीं चाहिए,  लोगों के चेहरों पर बस खुशी चाहिए. किसी का बुरा हो जाए,  ऐसी कामयाबी भी क्या कामयाबी हम खुद को भूल जाए,  ऐसी मंजिल भी क्या मंजिल. लेकिन दुनिया भी बड़ी अजीब है, उसको पानी नहीं मृगमरीचिका चाहिए,  काम नहीं, बस दिलासा चाहिए.  फिर कुछ ऐसे भी लोग होते हैं,  धर्म बेचते हैं, ईमान बेच देते हैं खुद की कामयाबी की खातिर इंसान बेच देते हैं! ऐसे लोग शहंशाह भी बन जाएँ तो क्या,  सबको बेवक़ूफ़ बना भी लें तो क्या! जीत  तो हमेशा से सच की हुई है,  आज हँस लो सपने बेचने वालों,  आखीर में तो मेहनत ही मुस्करायी है! [यह कविता देश की वर्तमान परिदृश्य में हैं. हम प्रत्यक्ष देख और समझ सकते हैं.  किन्तु राजनितिक विवाद में ना पड़ते हुए मैंने अपने संग्रह से एक चित्र लगाया है. संलग्न चित्र सन 2006 के एक पत्रिका से है. सारा वि...