कुछ युवकों के अदम्य साहस ने विश्व-विजयी (जैसा की उनका दावा था) अंग्रेज़ो को उनकी औकात बता दी थी। काकोरी में खजाने वाली ट्रेन ही नहीं, बल्कि अंग्रेजों के दंभ की इज्ज़त भी लूटी गयी थी। अंग्रेज़ कायरों ने भारत माता के सपूतों रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह खान और ठाकुर रोशन सिंह को आज ही के दिन, सान 1927 में फांसी दिया था। इस कांड के चौथे योद्धा थे राजेंद्र प्रसाद लाहिड़ी जिन्हे दो दिनों पहले ही यानी 17 दिसंबर को सरकार ने गोंडा जेल में फांसी दे दी थी। भारत के इन चार अमर बलिदानियों को कोटिशः नमन। आज जब देश आजाद है, कुछ खानदानों और कुछ व्यक्तियों ने ही इतिहास के सभी पन्नों पर कब्जा कर लिया है। अफसोस और शर्मनाक बात है कि इन शहीदों के नाम पर देश के शायद किसी शहर में कोई सड़क या मोहल्ला हो। ऐसे वीर सपूतों को भुला देने वाला राष्ट्र अपनी आज़ादी भी किसी दिन भुला देगा। मुझे याद है, कि जब मैं स्कूल में था तब हिन्दी की किताब में ठाकुर रोशन सिंह कि फाँसी, उनकी आर्थिक दशा और पारिवारिक जिम्मेदारियों पर एक कहानी थी। उसी माध्यम से मैंने रोशन सिंह जी को पहली बार ज...
...Coming across different shades of life, compels to think in more colours... dream in many worlds! So, my posts reflect that departure n variation! एक विद्रोही की यात्रा...